Khaba Fort Jaisalmer History

khaba-fort-jaisalmer
Khaba Fort Jaisalmer

Khaba Fort Jaisalmer History

खाबा किला इसकी रहस्यमई कहानियो के लिए जाना जाता है | खाबा किला जैसलमेर के पास स्थित एक डरावनी जगह है | खाबा किले का सम्बन्ध पालीवाल ब्राह्मणो से है | यहाँ पर आप 80 परिवारों के खँडहर हुए घरों को देख सकते है, जिन्हे 200 साल पहले तबाह किया गया था |
इस जगह आप किला, म्यूजियम, और प्राचीन गांव देख सकते है
khaba-fort-tourist
Khaba Fort Tourist
Read Also ⇒ Rajput Vansh and Gotra List

खाबा किला वास्तव में पालीवाल ब्राह्मणो का तबाह किया हुआ एक गांव है, जिसे वे ब्राह्मण 250 साल पहले किसी अज्ञात वजह से छोड़ गए थे | कुछ कहानियो के मुताबिक किसी बाहरी ताकत ने उन्हें गांव छोड़ने पर मजबूर किया था | और वे किसी और जगह जाकर रहने लगे, जिसके बारे में अभी किसी को कुछ नहीं पता है | कुछ कहानियो के मुताबिक वहां के राजा को ब्राह्मण की एक सुन्दर युवती पसंद आ गई थी | राजा उस लड़की से शादी करना चाहता था | लेकिन उस लड़की का परिवार इस बात से राजी नहीं था | और उन ब्राह्मणो को रातो रात वो गांव छोड़ना पड़ा | और कहा जाता है की वो ब्राह्मण राजस्थान के पाली जिले में जाकर बस गए | तब से खाबा किले के वहां कोई नहीं रहता है, तथा वह जगह पूरी तरह से तबाह कर दी गयी थी | खाबा किला अपने पीछे एक रहस्यमई कहानी छोड़ गया जिसका इतिहास में बहुत महत्व है |

The Great Warrior Of Rajputana Part 2

first-war-of-tarain
First War of Tarain

The Great Warrior of Rajputana

The 1st Battle of Tarain 1191 C.E. - Victory of Prithviraj Chauhan (तराइन की पहली लड़ाई 1191 ईस्वी, पृथ्वीराज चौहान की जीत)

मोहम्मद गौरी ने पूर्वी पंजाब के भटिंडा के किल्ले को घेर कर शिकंजा कसने की कोशिश की, ये किल्ला पृथ्वीराज के अधिकार क्षेत्र के सीमांत पर था | पृथ्वीराज ने अपने ससुर से मदद की गुहार की लेकिन अभिमानी जयचंद्र ने इस गुहार को नकार दिया | लेकिन निडर पृथ्वीराज ने अपनी सेना के साथ भटिंडा की और कूच किया और प्राचीन शहर थानेसर के पास तराइन (तरओरी से भी जाना जाता है) नामक स्थान पर पृथ्वीराज का सामना दुश्मन से हुआ | लगातार राजपूत सैन्य अभियानों की वजह से पृथ्वीराज चौहान ने ये लड़ाई जीत ली | मोहम्मद गौरी की सेना मोहम्मद गौरी को एक कैदी के रूप में छोड़कर भाग खड़ी हुई | मोहम्मद गौरी को जंजीरों से बांधकर पिथौरागढ़ (पृथ्वीराज की राजधानी) लाया गया | मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से दया की भीख मांगी तथा उसे छोड़ देने की दरखास्त की | पृथ्वीराज के मंत्रियो ने पृथ्वीराज को दुशमन को माफ़ न करने की सलाह दी | लेकिन निडर और साहसी योद्धा पृथ्वीराज ने एक बार पुनः सोचा और मोहम्मद गौरी को सम्मान के साथ छोड़ दिया |

The 2nd Battle of Tarain 1192 C.E. - Defeat of Prithiviraj Chouhan (तराइन की दूसरी लड़ाई 1192 ईस्वी, पृथ्वीराज चौहान की हार)

second-battle-of-tarain
Second Battle of Tarain
लेकिन अगले ही साल पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी को क्षमा करना भारी पड़ा | क्योकि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर फिर से हमला कर दिया | मोहम्मद गौरी ने मजबूत सेना के साथ कपट पूर्ण तरीका अपनाकर धोखे से सुबह होने से पहले राजपूत सेना पर हमला कर दिया (हिन्दू सूर्योदय होने के बाद और सूर्यास्त से पहले के बीच ही युद्ध करते है, सूर्यास्त होने के बाद और सूर्योदय होने से पहले कोई युद्ध नहीं किया जाता), और मोहम्मद गौरी ने ये युद्ध जीत लिया | पराजित पृथ्वीराज को जंजीरों से बांधकर मोहम्मद गौरी अपनी राजधानी गौरी लेकर गया |

Blinding of Prithviraj (पृथ्वीराज का अन्धा होना)

लेकिन पृथ्वीराज चौहान की कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई | जब पृथ्वीराज चौहान को कैदी के रूप में मुहम्मद गौरी के सामने पेश किया गया तब पृथ्वीराज लगातार सीधे मुहम्मद गौरी की आँखों में देख रहा था |
blinding-of-prithviraj-chauhan
Blinding of Prithviraj Chauhan
पृथ्वीराज चौहान के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जा रहा था | जब पृथ्वीराज को दरबार में पेश किया जा रहा था तो गौरी और उसके मंत्री पृथ्वीराज पर ताने मार रहे थे | पृथ्वीराज के साथ उसका जीवनीकार चाँद बरदाई भी था | चाँद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो नाम से पृथ्वीराज चौहान की जीवनी की रचना की थी | चाँद बरदाई ने पृथ्वीराज से कहा की उसे मोहम्मद गौरी के विश्वासघात और अपने अपमान का बदला लेना चाहिए |

गौरी ने पृथ्वीराज को अपनी आँखे नीचे करने का आदेश दिया | पृथ्वीराज ने तिरस्कार के साथ जवाब दिया कि जब तुम कैदी थे तब तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा था | और राजपूत की आँखे उसके प्राण निकल जाने पर ही नीचे हो सकती है | यह सुनकर गौरी ने गुस्से में आदेश सुनाया की पृथ्वीराज की आँखे गरम छड़ से बहार निकल दी जाये |

Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 1

The Blind Prithviraj Avenges the Injustice done to him (अंधे हो चुके पृथ्वीराज का मोहम्मद गौरी से बदला)

पृथ्वीराज की आँखे निकालने के बाद गौरी ने तीरंदाजी के खेल का एलान किया, इस तरह पृथ्वीराज और चाँद बरदाई को गौरी से बदला लेने का मौका मिल गया | चाँद बरदाई के सुझाव पर, पृथ्वीराज ने कहा की वो भी इस खेल में भाग लेना चाहता है | यह सुनकर गौरी के दरबारी जोर जोर से हसने लगे | गौरी और उसके दरबारी पृथ्वीराज पर ताने कसने लग गए की वह कैसे इस खेल में भाग ले सकता है जब वह देख भी नहीं सकता | पृथ्वीराज ने गौरी से कहा की वह अपने लक्ष्य पर निशाना लगाएगा बस उसे एक बार मौका मिल जाये |
avenge-of-prithviraj
Avenge of Prithviraj
कहे दिन के अनुसार खेल का आयोजन किया गया, गौरी अपने सिहासन पर बैठा था | पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया और खेल के लिए उसको जंजीरों से आजाद कर दिया गया | जब गौरी ने पृथ्वीराज को तीर छोड़ने का आदेश दिया तब पृथ्वीराज ने उसी दिशा की तरफ धनुष किया जिस तरफ से गौरी की आवाज आई थी और तीर छोड़ दिया | इस तरह मोहम्मद गौरी की मोत हो गयी | इस घटना का वर्णन चाँद बरदाई के दोहे में किया गया है-

"दस कदम आगे, बीस कदम दाए, बैठा है सुल्तान
अब मत चूको चौहान, चला दो अपना बाण"

(मतलब चाँद बरदाई अपने दोहे के माध्यम से पृथ्वीराज को समझाना चाहता था की गौरी किस तरफ बैठा है)

खेल के दौरान जब पृथ्वीराज ने कहा की उसको तीर छोड़ने का आदेश गौरी खुद दे तब गौरी को थोड़ा शक हुआ | तब गौरी ने पूछा की वह ऐसा क्यों चाहता है की में खुद आदेश दू | तब चाँद बरदाई ने समझाया की पृथ्वीराज एक राजा है और वह किसी राजा के आलावा और किसी का आदेश स्वीकार नहीं करेगा |

इस तरह बहादुर, अवास्तविक, निडर, दिल्ली के अंतिम हिन्दू शाशक पृथ्वीराज चौहान की कहानी खत्म हुई | इसके बाद 700 सालो के लिए दिल्ली मुस्लिम शाशन में चली गयी थी | मुस्लिम शाशन खत्म होते ही ब्रिटिश शाशन 1947 तक दिल्ली पर रहा | 7 वी सदी में कुछ हिन्दू शाशक मुस्लिम शाशन के दौरान दिल्ली के पास तक पहुंचे थे वे थे - 1527 में राणा सांगा, 1565 में राजा (हेमू) विक्रमादित्य (पानीपत की दूसरी लड़ाई), 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान मराठा सेना के को-कमांडर, तथा पेशवा का पुत्र श्रीमंत विश्वास राव | एक मुहावरे के अनुसार, दिल्ली पर मुस्लिम शाशन और ब्रिटिश शाशन के बाद हिंदू शाशक के रूप में राजेंद्र प्रसाद आये (स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति), और जवाहरलाल नेहरू (स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री) |

Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 1

Establishment of Muslim Rule in Delhi and the Ganges Valley (दिल्ली में और गंगा घाटी में मुस्लिम शाशन का स्थापित होना)

पृथ्वीराज चौहान के हाथो मृत्यु से पहले मोहम्मद गौरी ने एक बार और भारत पर हमला किया था, तथा 1194 के चंदवार युद्ध में अभिमानी जयचंद्र गहड़वाल को हराया था और कन्नौज पर कब्ज़ा कर लिया था | राजपूत राजाओ ने एक होने से मना कर दिया था और इस तरह एक एक करके सारे राजपूत राज्य मुस्लिम आक्रमणकारियो के हाथो चले गए | इस तरह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए रास्ता खुला हो गया | 1194 ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने भारत के उत्तर में कब्ज़ा कर लिया था | लेकिन वहा का शाशन अपने हाथ में न रखकर अपने एक दास क़ुतुब-उद-दिन-ऐबक को सोप दिया | मोहम्मद गौरी की अफ़ग़ानिस्तान में मृत्यु के बाद क़ुतुब-उद-दिन-ऐबक ने गुलाम सल्तनत के नाम से अपना खुद का राज्य बनाया | और वर्तमान में "गुलाम" सरनेम मुस्लिम में काफी उपयोग में लिया जाता है | यह इंगित करता है की काफी लोग उन गुलामो के वंशज है जो बड़े राजाओं द्वारा गुलाम बनाए जाते थे |

इस तरह 715 ईस्वी से 1194 ईस्वी तक मुस्लिम शाशन उत्तर भारत में लगभग पूरी तरह से फेल चूका था | और यह शाशन 1324 ईस्वी तक अल्ला-उद-दिन-खिलजी के जनरल मलिक काफूर के अभियानों की मदद से 120 सालो में लगभग पुरे भारत में फेल चूका था | महरास्त्र में देवगिरी के यादव, आंध्र के वारंगल में काकटिया, कर्नाटक के बेलूर-हलबिद में होयसल और तमिलनाडु में मदुरै के पंड्या इन कुछ राज्यों ने कुछ संघर्ष किया | और फिर 1194 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक 753 सालो के लिए हिन्दू साम्राज्य स्थापित हुआ |

The Rajput Resistance to Muslim Rule - Man Singh Tomar (राजपूतो द्वारा मुस्लिम शाशन का विरोध होना - मान सिंह तोमर)

दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पृथ्वीराज चौहान तथा जयचन्द राठोड के राज्यों पर मुस्लिम शाशन के बावजूद मुस्लिम आक्रमणकारी पुरे भारत पर कब्ज़ा नहीं कर पाए | कुछ राजपूत राज्य जैसे की ग्वालियर के तोमर, मेवाड़ के राणा अभी भी मध्य भारत में राज कर रहे थे | उन में से एक राजा थे ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर | मान सिंह तोमर ने लोड़ी मुस्लिम आक्रमणकारियों का बखूबी विरोध किया तथा सिकंदर लोड़ी द्वारा दक्षिण की और से ग्वालियर की और हो रहे मार्च को भी रोका | जबकि ग्वालियर के तोमरो ने मुस्लिम आक्रमणकारियों को मालवा पहुंचने से रोका | मेवाड़ के राणा उस मुस्लिम शाशन के दौरान भी भारत की आजादी की कोशिशें कर रहे थे | दक्षिण राजस्थान के राजपूत राज्य दिल्ली के मुस्लिम सुल्तानों का बहुत अच्छे से विरोध कर रहे थे और इस विरोध का केंद्र था चित्तौड़ राज्य |

The Great Warrior of Rajputana Part 1

rajput
Rajput

The Great Warrior Of Rajputana

The Rajputs (राजपूत)

पंजाब तक मुश्लिम शाशन के बावजूद, राजपूतो ने उत्तर में भारत के दिल पर कब्ज़ा कर लिया था | राजपूतो (राजा का पुत्र) ने मुस्लिमो के आने से पहले सामन्ती शाशको का चरण भी बहुत साहस और बहादुरी के साथ पूरा किया था | राजपूतो के दिग्गज योद्धा राजपूत वंशावली की उत्पत्ति बाप्पा रावल से मानते है | बाप्पा रावल एक दिग्गज संस्थापक था, जो 8 वी सदी में रहता था | वास्तव में हालाँकि राजपूत हिन्दू जाती में क्षत्रिय थे लेकिन आनुवंशिक रूप से शक और हूणों के वंशज माने जाते है | जिन्होंने (शक और हुंण) गुप्त अवधी के दौरान उत्तर भारत पर हमला किया था, और बाद में उत्तर भारत में ही बस गए थे | और उनके युद्ध के आक्रामक व्यव्हार के कारण हिन्दू समाज में क्षत्रिय के रूप में घुल मिल गए | जब पहली बार 12th शताब्दी में मुस्लिम शाशक भारत के दिल उत्तर में आये थे तब इन्होने (क्षत्रियो ने) ही मोर्चा सम्भाला था |

Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 2

राजपूत जो की 10 वी सदी के अंत तक मुख्य तोर पर स्थानीय सामन्त थे जो गुर्जर प्रतिहारो के लिए राजस्व इकट्टा करने का काम करते थे | बाद में जब गजनवी साम्राज्य का तूफान थम गया तब राजपूतो ने स्वतंत्र शाशक के रूप में गुर्जर प्रतिहारो के साम्राजय पर कब्ज़ा कर लिया | 11 वी तथा 12 वी शताब्दी में राजपूतो के मुख्य साम्राज्य पूर्वी पंजाब में कहमना (चौहान), उत्तर में राजस्थान और दिल्ली, गंगा घाटी (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) में गहड़वाल (राठोड), मध्य भारत में परमार, ग्वालियर में तोमर थे | इनमे सबसे शक्तिशाली साम्राज्य चौहान और राठोड के थे | लेकिन दुर्भाग्य से दोनों हमेशा युद्ध की स्थति में रहते थे, जब 1191 ईस्वी में मुस्लिम हमलावर फिर से दिखाई देने लगे |

The Gahadavalas (Rathods) (गहड़वाल राठोड)

11 वी शताब्दी में, मुहम्मद ग़ज़नी के युग के बाद, सबसे शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य उत्तर भारत में राजपूत वंश के गहड़वाल और राठोड वंश के साम्राज्य थे | गहड़वाल वंश के संस्थापक गोविंदचंद्र गहड़वाल थे | गोविंदचंद्र गहड़वाल एक चतुर शाशक थे तथा इन्होने कन्नौज से शाशन किया था | उत्तर भारत का बहुत बड़ा भाग तथा नालंदा यूनिवर्सिटी टाउन भी इनके राज्य में थे | इन्होने मुस्लिम गुसपैठ का बखूबी जवाब दिया, तथा मुस्लिम गुसपैठ को रोका | इन्होने तुर्कियों से लड़ने के लिए तुरुष्का कर शुरू किया था | इनके पोते का नाम जयचंद्र गहड़वाल (राठोड) था | जयचंद्र गहड़वाल की भारतीय इतिहास में दुखद भूमिका थी |

The Story of Prithviraj Chouhan and Muhammad Ghori (पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की कहानी)

prithviraj-chauhan
Prithviraj Chauhan
जयचन्द के दिनों में, एक प्रतिद्वंदी राजपूत वंश ने दिल्ली के पिथौरागढ़ में अपने आप को स्थापित कर लिया था | उस समय वहा का शाशक पृथ्वीराज चौहान था | पृथ्वीराज चौहान एक रोमेंटिक, वीर, और निडर व्यक्ति था | लगातार सैन्य अभियानों की मदद से पृथ्वीराज चौहान ने अपना राज्य सांभर (शकमबरा) से राजस्थान, गुजरात, और पूर्वी पंजाब तक फेला लिया था | उसने अपना शाशन अपने राज्य की जुड़वाँ राजधानी दिल्ली और अजमेर से किया था | पृथ्वीराज चौहान की तेजी से बढ़ती प्रगति से उस टाइम के शक्तिशाली शाशक जयचंद्र गहड़वाल को ईर्ष्या होने लगी |

Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 2

Prithviraj's Love for Sanyogita - Jaichandra's Daughter (जयचंद्र की बेटी संयोगिता और पृथ्वीराज का प्यार)

पृथ्वीराज के निडर कारनामो की कहानी देश में दूर दूर तक फैलने लगी | देश में हो रही चर्चाओं में पृथ्वीराज चौहान चर्चा का मुख्य केंद्र था | संयोगिता, जो की जयचंद्र गहड़वाल की पुत्री थी वो पृथ्वीराज चौहान से प्यार करने लगी थी | संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के बीच गुप्त पत्राचार शुरू हो गया था | जब संयोगिता के पिता अभिमानी जयचंद्र गहड़वाल को यह खबर पता लगी तो, जयचंद्र ने उसकी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज चौहान को सबक सिखाने का फैसला लिया | इसलिए एक स्वयंवर (एक समारोह जहां दुल्हन अपनी पसंद का दूल्हा वहा इकट्टा हुए दुल्लो में से चुन सकती है, राजकुमार पसंद आने पर राजकुमारी राजकुमार के गले में माला पहनती है, यह एक शाही हिन्दू रिवाज है) का आयोजन किया गया | जयचंद्र ने कन्नौज से सभी छोटे बड़े राजकुमारों को इस शाही स्वंयवर के लिए बुलाया | लेकिन जयचंद्र ने पृथ्वीराज को नहीं बुलाया |

तथा पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए जयचंद्र ने पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति बनकर उसे द्वारपाल बना कर दरवाजे पर खड़ा कर दिया |

The Elopement of Sanyogita with Prithviraj (संयोगिता का हमेशा के लिए पृथ्वीराज चौहान का हो जाना)

पृथ्वीराज को इस बात का पता लगा तो उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर योजनाएं बनना शुरू कर दिया |
prithviraj-chauhan-with-sanyogita
Prithviraj Chauhan with Sanyogita
और इस तरह तय दिवस पर स्वयंवर का आयोजन किया गया | संयोगिता ने सभी राजकुमारों को नकारते हुए द्वार पर खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को माला पहना दी | संयोगिता की इस हरकत पर वहा बैठे सभी लोग अच्चम्भित थे | और सभी लोग सोचने लगे की जयचंद्र अब क्या करेंगे |

पृथ्वीराज चौहान भी वही मौजूद थे और वे अपनी ही मूर्ति के पीछे छिपे हुए थे | पृथ्वीराज मूर्ति के पीछे से निकलकर आगे आये और संयोगिया को उठाया और अपने घोड़े पर बिठाया और दिल्ली के लिए निकल पड़े |

Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 2

चौहान और राठोड के बीच युद्ध दोनों ही राज्यों के लिए घातक था |

जयचंद्र और उसकी सीना ने पृथ्वीराज का पीछा किया | दोनों ही वंश के बीच पड़ी इस खटास के कारण दोनों राज्यों के बीच 1189 और 1190 में युद्ध लड़ा गया | और दोनों राज्यों को बहुत नुकसान हुआ | जब यह सब कुछ चल रहा था, तब एक दूसरा मुस्लिम शाशक जिसका नाम मोहम्मद था, जो अफ़ग़ानिस्तान के गौरी का रहने वाला था, वह धीरे धीरे शक्तिशाली होने लगा | मोहम्मद गौरी ने ग़ज़नी पर कब्ज़ा कर लिया और पंजाब के ग़ज़नी गवर्नर पर हमला कर दिया | इस तरह मोहम्मद गौरी का राज्य पृथ्वीराज चौहान के राज्य तक पहुंच गया |

Shekhawat Rajput Logo Wallpaper

शेखावत राजपूतो ने शेखावाटी क्षेत्र में 500 सालो तक शाशन किया | जयपुर की कछवाहा वंश में शेखावत सबसे प्रसिद्ध वंश है, और सबसे बहादुर मने जाते है |

शेखावत जयपुर पर राज करने वाले कछवाहा वंश की 65 शाखाओं मेसे एक सबसे प्रसिद्ध शाखा है | तथा शेखावत महान राजपूत योद्धा राव शेखाजी के वंशज माने जाते है | शेखावतों ने शेखावाटी क्षेत्र पर 500 सालो तक शाशन किया तथा उन्हें "Tazimi sirdars" की उपाधि से नवाजा गया | शेखावतों ने शेखावाटी क्षेत्र में अपने शाशन कल में लगभग 50 किलो का निर्माण किया | Col. J.C. Brooke ने अपनी किताब राजनितिक इतिहास में लिखा था, की अगर किसी सेना में घुड़सवारी सेना की भर्ती करनी हो तो शेखावाटी के आलावा और कोई क्षेत्र नहीं होगा जहां उनकी ये जरूरत पूरी हो | शेखावत भारतीय सेना में सुना जाने वाला बहुत ही आम नाम है | शेखावत वंश के कई शूरवीरों ने शौर्यता पुरस्कार जीते है, जैसे की परम वीर चक्र (युद्ध के दौरान अदम्य साहस और वीरता के लिए दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च पुरस्कार), महावीर चक्र आदि |
Read Also ⇒ Rajput Logo and Symbol Collection

Shekhawat Rajput Logo Wallpaper

shekhawat-rajput
Shekhawat Rajput
shekhawat-rajput
Shekhawat Rajput
shekhawat-rajput-logo-wallpaper
Shekhawat Rajput Logo Wallpaper
shekhawat-rajput
Shekhawat Rajput
shekhawati
Shekhawati
shekhawat-rajput
Shekhawat Rajput
shekhawati-region
Shekhawati Region

Maharana Pratap Statue Udaipur

maharana-pratap-biggest-statue
Maharana Pratap Biggest Statue
बहुत जल्दी ही हम महाराणा प्रताप की बहुत बड़ी और भव्य प्रतिमा उदयपुर शहर में देखेंगे | इस पोस्ट को इतना शेयर करो की हर राजपूत तक ये बात पहुंचे |
महाराणा प्रताप हमारे देश की आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, तथा युवाओं की महाराणा प्रताप के मातृभूमि के लिए प्रेम, एकता, नेतृत्व, भाईचारा, आदि गुणों का पालन करना चाहिए | राजपुताना के लिए ये एक अच्छी खबर है |

महाराणा प्रताप जी कि 57 फीट ऊँची प्रतिमा जो उदयपुर में बन रही है | इस प्रतिमा को भारत वर्ष कि सबसे ऊँची प्रतिमा होने का गौरव प्राप्त होगा |

Read Also ⇒ Maharana Pratap Life History – Maharana of Mewar State

History of Chauhan Rajput

prithviraj-chauhan
Prithviraj Chauhan

Ancient History of Chauhan Rajput

चौहान राजपूतो को चाहूमन नाम से भी जाना जाता है | चाहूमन ही वो पुरुष था जिसकी वजह से चौहान वंश की उत्पत्ति हुई | चाहूमन सभी राजपूतो में बहादुर था | चाहूमन की कुल 26 शाखाएं है | हाडा, देवड़ा, सोनगरा आदि अपनी वीरता के लिए जाने जाते है |

चाहूमन का मतलब चार हाथो वाला, चतुष्कोष |

एक पौराणिक कथा के अनुसार राक्षशो से लड़ने के लिए ब्राह्मणो द्वारा वीर भेजे गए थे, उनमे से केवल चौहानो ने उन राक्षशो को हराया था |

माउंट आबू की पहाड़ियों पर कुछ भिक्षु और ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे | कुछ राक्षश वहां आये और उन भिक्षुओ को परेशान करना शुरू कर दिया | इसलिए भिक्षुओं ने राक्षशो को रोकने के लिए एक यज्ञ कुंड का निर्माण किया | लेकिन राक्षशो ने यज्ञ कुंड में हड्डिया और मॉस फेकना शुरू कर दिया |
इसलिए राक्षशो को रोकने के लिए, भिक्षुओ ने भगवान महादेव की प्रार्थना करना शुरू कर दिया | प्रार्थना के बाद, अग्नि कुंड से एक पुरुष पैदा हुआ | लेकिन वह किसी योद्धा की तरह नहीं लग रहा था | इसलिए भिक्षुओ ने उसे द्वारपाल बना दिया | इसके बाद दूसरा पुरुष उस अग्नि कुंड से पैदा हुआ | उसका नाम चालुक रखा गया | इसी तरह एक तीसरा पुरुष अग्नि कुंड से निकला, ब्राह्मणो ने उसे परमार नाम दिया | 
chauhan-rajput-logo
Chauhan Rajput Logo
ब्राह्मणो ने फिर से प्रार्थना शुरू कर दी | और आखिरकार अग्नि कुंड से एक पुरुष पैदा हुआ जो युद्ध के कपडे पहने हुए था और जिसकी ललाट पर तेज था | उस पुरुष के एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ में तलवार थी | ब्राह्मणो ने उसे चौहान नाम दिया | ब्राह्मणो ने चौहान को राक्षशो से लड़ने को भेजा |

राक्षशो की हार से भिक्षु और ब्राह्मण बहुत खुश थे | चौहानो ने अपना नाम उसी चौहान पुरुष की वजह से पाया | पृथ्वीराज चौहान भी इसी चौहान वंश में पैदा हुए |

Anhil (प्रथम पुरुष) को चौहानो का आदि पुरुष कहा जाता है | Anhil से पृथ्वीराज चौहान तक कुल मिलकर चौहानो के 39 राजा हुए |

चौहानो को 24 शाखाओं में बांटा गया है | वर्तमान में कोटा और बूंदी (राजस्थान) के चौहान वंश काफी मशहूर है |
गागरोन के खींची, सिरोही के देवड़ा, जालोर के सोनगरा, सूर्यबह और सांचोर के चौहान, पावागढ़ के पावेचे अपनी बहादुरी के लिए लोकप्रिय है |

Rajput In Civil Services IPS

rajput-in-civil-services-ips
Rajput in Civil Services IPS

Rajput in Civil Services List of Rajput IPS Officers

S. No. Name ( Present Posting )
1. Sh. R.S. Chauhan ( ADG, Armed Battalion, GOR )
2. Sh. Ajai Singh ( Joint Secretary, Secretary, Cabinet Secretariat, New Delhi )
3. Sh. Ajit Singh Shekhawat ( IG, CID (Crime Branch), GOR )
4. Sh. B.S. Chauhan ( ADG, Vigilance, GOR )
5. Sh. P.S. Chundawat ( SP, Tonk, GOR )
6. Sh. Pankaj K. Singh ( DIG, CBI- Special Police Establishment, New Delhi )
7. Sh. Rajesh Nirwan ( SP, CBI, New Delhi )
8. Sh. Sudhir Pratap Singh ( DIG, CBI, New Delhi )
9. Sh. Vijay K. Singh ( SP, Jaipur (East), GOR )
10. Sh. D. S. Chundawat ( SP, Banswara )
11. Sh. Ganga Singh ( Ad. SP (Rtd 2006), Crime Branch, Jaipur )
12. Sh. Bijay Kumar Singh ( I.G., Maysore )
Do comment if you have any information regarding to it.

Read Also ⇒ Rajput IAS Officers