Kuldevi of Rajput |
राजपूतो को तीन वंशो में बांटा गया है सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, अग्निवंशी | इन तीनो में से प्रतियेक वंश वापस अलग अलग शाखा, वंश और कुल में बांटे गए है | कुल किसी भी राजपूत वंश की प्राथमिक पहचान होती है | प्रतियेक कुल की रक्षा उनके परिवार के देवता या कुलदेवी करती है | नीचे अलग अलग कुल व उनकी कुलदेवी का नाम दिया गया है |
Read Also ⇒ Rajput Clans, Vansh and Gotra List
List of The Kuldevi of Rajputs (सभी वंश की कुलदेवी)
S.No. Vansh Kuldevi | S.No. Vansh Kuldevi |
---|---|
1. राठौड़ नागणेचिया | 2. गहलोत बाणेश्वरी माता |
3. कछवाहा जमवाय माता | 4. दहिया कैवाय माता |
5. गोहिल बाणेश्वरी माता | 6. चौहान आशापूर्णा माता |
7. बुन्देला अन्नपूर्णा माता | 8. भारदाज शारदा माता |
9. चंदेल मेंनिया माता | 10. नेवतनी अम्बिका भवानी |
11. शेखावत जमवाय माता | 12. चुड़ासमा अम्बा भवानी माता |
13. बड़गूजर कालिका(महालक्ष्मी)माँ | 14. निकुम्भ कालिका माता |
15. भाटी स्वांगिया माता | 16. उदमतिया कालिका माता |
17. उज्जेनिया कालिका माता | 18. दोगाई कालिका(सोखा)माता |
19. धाकर कालिका माता | 20. गर्गवंश कालिका माता |
21. परमार सच्चियाय माता | 22. पड़िहार चामुण्डा माता |
23. सोलंकी खीवज माता | 24. इन्दा चामुण्डा माता |
25. जेठंवा चामुण्डा माता | 26. चावड़ा चामुण्डा माता |
27. गोतम चामुण्डा माता | 28. यादव योगेश्वरी माता |
29. कौशिक योगेश्वरी माता | 30. परिहार योगेश्वरी माता |
31. बिलादरिया योगेश्वरी माता | 32. तंवर चिलाय माता |
33. हैध्य विन्ध्यवासिनि माता | 34. कलचूरी विन्धावासिनि माता |
35. सेंगर विन्धावासिनि माता | 36. भॉसले जगदम्बा माता |
37. दाहिमा दधिमति माता | 38. रावत चण्डी माता |
39. लोह थम्ब चण्डी माता | 40. काकतिय चण्डी माता |
41. लोहतमी चण्डी माता | 42. कणड़वार चण्डी माता |
43. केलवाडा नंदी माता | 44. हुल बाण माता |
45. बनाफर शारदा माता | 46. झाला शक्ति माता |
47. सोमवंश महालक्ष्मी माता | 48. जाडेजा आशपुरा माता |
49. वाघेला अम्बाजी माता | 50. सिंघेल पंखनी माता |
51. निशान भगवती दुर्गा माता | 52. बैस कालका माता |
53. गोंड़ महाकाली माता | 54. देवल सुंधा माता |
55. खंगार गजानन माता | 56. चंद्रवंशी गायत्री माता |
57. पुरु महालक्ष्मी माता | 58. जादोन कैला देवी (करोली ) |
59. छोकर चन्डी केलावती माता | 60. नाग विजवासिन माता |
61. राउलजी क्षेमकल्याणी माता | 62. चंदोसिया दुर्गा माता |
63. सरनिहा दुर्गा माता | 64. सीकरवाल दुर्गा माता |
65. किनवार दुर्गा माता | 66. दीक्षित दुर्गा माता |
67. काकन दुर्गा माता | 68. तिलोर दुर्गा माता |
69. विसेन दुर्गा माता | 70. निमीवंश दुर्गा माता |
71. निमुडी प्रभावती माता | 72. नकुम वेरीनाग बाई |
73. वाला गात्रद माता | 74. स्वाति कालिका माता |
Kuldevi of Rajputs Vansh and Gotra
By Editorial Team |
April 28, 2015
Kiran Shekhawat |
Kiran Shekhawat
किरण शेखावत 27 वर्ष की एक राजपूत युवती थी, जो राजस्थान की रहने वाली थी | वह भारतीय नेवी में लेफ्टिनेंट थी | उन्होंने भारतीय नेवी 2010 में ज्वाइन की थी | उनके फादर नेवी से रिटायर्ड अफसर है | और इनके भाई भी नेवी में नाविक है | इनके हस्बैंड लेफ्टिनेंट VS Chokker भी नेवी में अफसर है | किरण शेखावत की शादी 2 साल पहले हुई थी |किरण शेखावत एक अनुशाषित अफसर थी | किरण शेखावत भारतीय नेवी की पहली महिला टुकड़ी की सदस्य थी, इस टुकड़ी ने भारतीय गणत्रंत दिवस 2015 की परेड में भाग भी लिया था |
24 मार्च 2015 को किरण शेखावत जी भारतीय नेवी के डोर्नियर विमान में थी | और वह विमान दुर्गटनाग्रस्त हो गया | उनकी बॉडी विमान में मृत पाई गई | और इस तरह भारतीय इतिहास में पहली महिला जो ड्यूटी के दौरान शहीद हो गयी | RIP
Kiran Shekhawat Biography
By Editorial Team |
March 28, 2015
रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर बैठा | रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी | उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया | तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि “हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे |
Read Also ⇒ Gora Badal Story in Hindi
सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि ” मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है | ”
रानी को अपनी नहीं पुरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी | सो उसने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख सकता है | अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है साथ ही उसकी बदनामी होगी वो अलग सो उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अथिती की तरह किया |
रानी पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया | आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |
रत्नसिंह को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि रानी को उसे सौंपने के बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा |
रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -” मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
उधर रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर सात सौ डोलियाँ तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया | इस तरह पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली उसकी डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे | अल्लाउद्दीन व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे |
Read Also ⇒ Rajput Princess Paintings and Wallpapers
सारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पड़े इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |
इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली | आखिर उसके छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया |
जौहर के लिए गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | रानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया |
थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया |
जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया –
इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके |
उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
Read Also ⇒ Gora Badal Story in Hindi
सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि ” मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है | ”
रानी पद्मिनी |
रानी पद्मिनी |
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अथिती की तरह किया |
रानी पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया | आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |
रानी पद्मिनी का महल |
रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -” मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
रानी पद्मिनी |
Read Also ⇒ Rajput Princess Paintings and Wallpapers
सारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पड़े इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |
इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली | आखिर उसके छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया |
चितौड़ दुर्ग |
थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया |
जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया –
"बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |
सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||"
इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके |
उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
History of Rani Padmini of Chittor
By Editorial Team |
February 16, 2013
Here on this page you will find Chauhan rajput logo. Chauhan rajput symbol. Chauhan rajput original symbol. Chauhan rajput images.
Read Also ⇒ History of Chauhan Rajput
Read Also ⇒ History of Chauhan Rajput
Chauhan Rajput Logo and Symbol
By Editorial Team |
February 12, 2013
Chamunda Mata Jodhpur |
History of Chamunda Mata Jodhpur
1459 में राव जोधा अपने राज्य की राजधानी मण्डोर से मारवाड़ विस्थापित करने के बारे में सोच रहे थे | वह मारवाड़ में एक पहाड़ी पर मेहरानगढ़ किला बनना चाहते थे | जो "माउंटेन ऑफ़ बर्ड्स" के नाम से भी जाना जाता है | लेकिन वह पहाड़ी पहले से ही hermit (Cheeria Nathji, पक्षियों का रखवाला) के कब्जे में थी | इसलिए राव जोधा ने hermit को खदेड़ कर दिया | जब राव जोधा ने hermit को खदेड़ा तो hermit ने राव जोधा को श्राप दिया की तुम्हारे राज्य में हमेशा पानी की कमी रहेगी |Read Also ⇒ Tanot Mata History
इस समस्या के निस्तारण के लिए, राव जोधा ने किले के दाई और माँ चामुंडा का एक मंदिर बनवाया | तब से माँ चामुंडा जोधपुर की दत्तक (adopted) देवी के के रूप में जानी जाती है | और तब से हर साल नवरात्री और दशहरा पर यहाँ उत्सव मनाया जाता है |
Chamunda Mata Temple Jodhpur |
History of Chamunda Mata Jodhpur
By Editorial Team |
February 09, 2013
गणगौर की बहुत बहुत शुभकामनाये | गणगौर भारत के राजस्थान में मनाया जाने वाला बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है | निचे दिए फोटोज में आप देख सकते है की गणगौर के त्यौहार में युवतियों और शादी शुदा महिलायो द्वारा एक बर्तन में गेहूं, जौ उगाए जाते है | यह धन दौलत, खुशहाली, उन्नति का प्रतिक होता है | तो आप भी मनाइए इस त्यौहार को और अपने सगे सम्बन्धियों को शुभकामनाये दीजिये |
Gangaur Puja Quotes and Gangaur Images
Prince Shivraj Singh JodhpurGangaur Puja Images and Quotes
By Editorial Team |
February 07, 2013
Subscribe to:
Posts (Atom)