First War of Tarain |
The Great Warrior of Rajputana
The 1st Battle of Tarain 1191 C.E. - Victory of Prithviraj Chauhan (तराइन की पहली लड़ाई 1191 ईस्वी, पृथ्वीराज चौहान की जीत)
मोहम्मद गौरी ने पूर्वी पंजाब के भटिंडा के किल्ले को घेर कर शिकंजा कसने की कोशिश की, ये किल्ला पृथ्वीराज के अधिकार क्षेत्र के सीमांत पर था | पृथ्वीराज ने अपने ससुर से मदद की गुहार की लेकिन अभिमानी जयचंद्र ने इस गुहार को नकार दिया | लेकिन निडर पृथ्वीराज ने अपनी सेना के साथ भटिंडा की और कूच किया और प्राचीन शहर थानेसर के पास तराइन (तरओरी से भी जाना जाता है) नामक स्थान पर पृथ्वीराज का सामना दुश्मन से हुआ | लगातार राजपूत सैन्य अभियानों की वजह से पृथ्वीराज चौहान ने ये लड़ाई जीत ली | मोहम्मद गौरी की सेना मोहम्मद गौरी को एक कैदी के रूप में छोड़कर भाग खड़ी हुई | मोहम्मद गौरी को जंजीरों से बांधकर पिथौरागढ़ (पृथ्वीराज की राजधानी) लाया गया | मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से दया की भीख मांगी तथा उसे छोड़ देने की दरखास्त की | पृथ्वीराज के मंत्रियो ने पृथ्वीराज को दुशमन को माफ़ न करने की सलाह दी | लेकिन निडर और साहसी योद्धा पृथ्वीराज ने एक बार पुनः सोचा और मोहम्मद गौरी को सम्मान के साथ छोड़ दिया |
Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 1
The 2nd Battle of Tarain 1192 C.E. - Defeat of Prithiviraj Chouhan (तराइन की दूसरी लड़ाई 1192 ईस्वी, पृथ्वीराज चौहान की हार)
Second Battle of Tarain |
Blinding of Prithviraj (पृथ्वीराज का अन्धा होना)
लेकिन पृथ्वीराज चौहान की कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई | जब पृथ्वीराज चौहान को कैदी के रूप में मुहम्मद गौरी के सामने पेश किया गया तब पृथ्वीराज लगातार सीधे मुहम्मद गौरी की आँखों में देख रहा था |Blinding of Prithviraj Chauhan |
गौरी ने पृथ्वीराज को अपनी आँखे नीचे करने का आदेश दिया | पृथ्वीराज ने तिरस्कार के साथ जवाब दिया कि जब तुम कैदी थे तब तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा था | और राजपूत की आँखे उसके प्राण निकल जाने पर ही नीचे हो सकती है | यह सुनकर गौरी ने गुस्से में आदेश सुनाया की पृथ्वीराज की आँखे गरम छड़ से बहार निकल दी जाये |
Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 1
The Blind Prithviraj Avenges the Injustice done to him (अंधे हो चुके पृथ्वीराज का मोहम्मद गौरी से बदला)
पृथ्वीराज की आँखे निकालने के बाद गौरी ने तीरंदाजी के खेल का एलान किया, इस तरह पृथ्वीराज और चाँद बरदाई को गौरी से बदला लेने का मौका मिल गया | चाँद बरदाई के सुझाव पर, पृथ्वीराज ने कहा की वो भी इस खेल में भाग लेना चाहता है | यह सुनकर गौरी के दरबारी जोर जोर से हसने लगे | गौरी और उसके दरबारी पृथ्वीराज पर ताने कसने लग गए की वह कैसे इस खेल में भाग ले सकता है जब वह देख भी नहीं सकता | पृथ्वीराज ने गौरी से कहा की वह अपने लक्ष्य पर निशाना लगाएगा बस उसे एक बार मौका मिल जाये |Avenge of Prithviraj |
"दस कदम आगे, बीस कदम दाए, बैठा है सुल्तान
अब मत चूको चौहान, चला दो अपना बाण"
(मतलब चाँद बरदाई अपने दोहे के माध्यम से पृथ्वीराज को समझाना चाहता था की गौरी किस तरफ बैठा है)अब मत चूको चौहान, चला दो अपना बाण"
खेल के दौरान जब पृथ्वीराज ने कहा की उसको तीर छोड़ने का आदेश गौरी खुद दे तब गौरी को थोड़ा शक हुआ | तब गौरी ने पूछा की वह ऐसा क्यों चाहता है की में खुद आदेश दू | तब चाँद बरदाई ने समझाया की पृथ्वीराज एक राजा है और वह किसी राजा के आलावा और किसी का आदेश स्वीकार नहीं करेगा |
इस तरह बहादुर, अवास्तविक, निडर, दिल्ली के अंतिम हिन्दू शाशक पृथ्वीराज चौहान की कहानी खत्म हुई | इसके बाद 700 सालो के लिए दिल्ली मुस्लिम शाशन में चली गयी थी | मुस्लिम शाशन खत्म होते ही ब्रिटिश शाशन 1947 तक दिल्ली पर रहा | 7 वी सदी में कुछ हिन्दू शाशक मुस्लिम शाशन के दौरान दिल्ली के पास तक पहुंचे थे वे थे - 1527 में राणा सांगा, 1565 में राजा (हेमू) विक्रमादित्य (पानीपत की दूसरी लड़ाई), 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान मराठा सेना के को-कमांडर, तथा पेशवा का पुत्र श्रीमंत विश्वास राव | एक मुहावरे के अनुसार, दिल्ली पर मुस्लिम शाशन और ब्रिटिश शाशन के बाद हिंदू शाशक के रूप में राजेंद्र प्रसाद आये (स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति), और जवाहरलाल नेहरू (स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री) |
Read Also ⇒ The Great Warrior of Rajputana Part 1
Establishment of Muslim Rule in Delhi and the Ganges Valley (दिल्ली में और गंगा घाटी में मुस्लिम शाशन का स्थापित होना)
पृथ्वीराज चौहान के हाथो मृत्यु से पहले मोहम्मद गौरी ने एक बार और भारत पर हमला किया था, तथा 1194 के चंदवार युद्ध में अभिमानी जयचंद्र गहड़वाल को हराया था और कन्नौज पर कब्ज़ा कर लिया था | राजपूत राजाओ ने एक होने से मना कर दिया था और इस तरह एक एक करके सारे राजपूत राज्य मुस्लिम आक्रमणकारियो के हाथो चले गए | इस तरह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए रास्ता खुला हो गया | 1194 ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने भारत के उत्तर में कब्ज़ा कर लिया था | लेकिन वहा का शाशन अपने हाथ में न रखकर अपने एक दास क़ुतुब-उद-दिन-ऐबक को सोप दिया | मोहम्मद गौरी की अफ़ग़ानिस्तान में मृत्यु के बाद क़ुतुब-उद-दिन-ऐबक ने गुलाम सल्तनत के नाम से अपना खुद का राज्य बनाया | और वर्तमान में "गुलाम" सरनेम मुस्लिम में काफी उपयोग में लिया जाता है | यह इंगित करता है की काफी लोग उन गुलामो के वंशज है जो बड़े राजाओं द्वारा गुलाम बनाए जाते थे |इस तरह 715 ईस्वी से 1194 ईस्वी तक मुस्लिम शाशन उत्तर भारत में लगभग पूरी तरह से फेल चूका था | और यह शाशन 1324 ईस्वी तक अल्ला-उद-दिन-खिलजी के जनरल मलिक काफूर के अभियानों की मदद से 120 सालो में लगभग पुरे भारत में फेल चूका था | महरास्त्र में देवगिरी के यादव, आंध्र के वारंगल में काकटिया, कर्नाटक के बेलूर-हलबिद में होयसल और तमिलनाडु में मदुरै के पंड्या इन कुछ राज्यों ने कुछ संघर्ष किया | और फिर 1194 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक 753 सालो के लिए हिन्दू साम्राज्य स्थापित हुआ |
No comments
Leave a Reply